स्वार्थ – साधन की कपटनीति | Swarth – Sadhan Ki Kapatniti

स्वार्थ – साधन की कपटनीति | Swarth – Sadhan Ki Kapatniti : किसी वन में वज्रदंट्र नाम का एक सिंह रहता था। उसके दो अनुचर भी हर समय उसके साथ रहते थे। उनमें से एक था क्रव्यमुख नाम का एक भेड़िया, और दूसरा था चतुरक एक नामक एक गीदड़ |
एक दिन सिंह ने एक ऐसी ऊंटनी का शिकार किया जिसके बच्चा पैदा होने वाला था। सिंह ने उसका पेट चीरा तो उसमें से ऊंट का एक छोटा-सा शिशु निकला.

Also Check : ध्यानमग्न तोता – अकबर बीरबल की कहानियाँ।

ऊंटनी का मांस तो सिंह और उसने परिवार ने वहीं पर खाकर अपनी भूख मिटा ली, किंतु उस शिशु पर उसे दया आ गई। वह उसे अपने साथ ले आया। घर लाकर उसने ऊंटनी के शिशु से कहा-तुम्हें मुझसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं पुत्र। यहां निर्भय होकर विचरण करो। यहां तुमसे कोई कुछ नहीं कहेगा। और चूंकि तुम्हारे कान शंकु के आकार के हैं, इसलिए मैं तुम्हारा नाम शंकुकर्ण रखता हूं। अब तुम इसी नाम से पुकारे जाओगे।’ ‘

Also Check : महात्मा गाँधी के बारे में जानकारी तथा उनके कोट्स

स्वार्थ – साधन की कपटनीति | Swarth – Sadhan Ki Kapatniti : शनै:शनै: ऊंट का वह बच्चा जवान हो गया, तब भी उसने सिंह का साथ न छोड़ा, परछाई के समान हमेशा उसके साथ ही लगा रहा। एक दिन जंगल में एक मतवाला हाथी आ निकला और सिंह का उस हाथी से युद्ध हो गया। उस युद्ध में हाथी ने सिंह को इतना घायल कर दिया कि उसका चलना-फिरना बिल्कुल दूभर हो गया। एक दिन जब सिंह भूख से अधिक पीड़ित हुआ तो उसने अपने अनुचरों से कहा कि वह कोई ऐसा वन्य जीव खोजकर उसके समीप ले आएं जिसका वह घायल होने की अवस्था में भी वध करके अपनी भूख शांत कर सके। उस दिन तीनों दिन-भर वन में घूमते रहे, किंतु कहीं कुछ न मिला। तब गीदड़ ने सोचा कि क्यों न आज इस ऊंट को ही मारकर अपनी भूख मिटाई जाए?

Also Check : Amitabh Bachchan Success in Hindi 

स्वार्थ – साधन की कपटनीति | Swarth – Sadhan Ki Kapatniti : यही सोचकर उसने शंकुकर्ण से कहा-‘शंकुकर्ण! आज इतना भटकने के बाद भी स्वामी के लिए कोई आहार नहीं मिला। यदि स्वामी भूखे ही मर गए तो फिर हमारा भी विनाश निश्चित है। स्वामी के हित में तुमसे एक बात कहता हूं, उसे ध्यान से सुनो। तुम ऐसा करो कि दूगुने ब्याज पर स्वामी को अपना-अपना शरीर समर्पित कर दी। इससे तुम्हारा शरीर तो दुगुना हो जाएगा और स्वामी भी भूखे मरने से बच जाएंगे।’ शंकुकर्ण बोला-‘ठीक है। किंतु तुम स्वामी को बता देना कि व्यवहार में उन्हें धर्म को साक्षी के रूप में स्वीकार करना होगा।’ यह कुटिल चाल खेलकर वे दोनों सिंह के पास पहुंचे। तब चतुरक ने सिंह से कहा-‘स्वामी ! आहार के लिए कोई जीव नहीं मिला। अब तो सूर्यास्त भी हो गया है। यदि आपको दुगुना शरीर देना स्वीकार हो तो यह शंकुकर्ण धर्म को साक्षी मानकर दुगुने ब्याज पर अपना शरीर देने को प्रस्तुत है।”

Also Check : P. T. Usha in Hindi 

स्वार्थ – साधन की कपटनीति | Swarth – Sadhan Ki Kapatniti : सिंह ने कहा-‘‘यदि ऐसी बात है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। तुम धर्म को साक्षी मानकर इसका शरीर ले सकते हो।’ स्वीकृति मिलते ही क्रव्यमुख और चतुरक ने मिलकर ऊंट का शरीर चीर डाला। ऊंट के मर जाने पर सिंह ने चतुरक से कहा-“मैं नदी में स्नान करके आता हूं, तब तक तुम दोनों इस ऊंट के शरीर की रक्षा करना।’ सिंह के चले जाने पर चतुरक सोचने लगा कि ऐसा कौन-सा उपाय हो सकता है, जिससे ऊंट का सारा भाग मेरे हिस्से में ही आ जाए ! कुछ सोचकर उसने अपने साथी भेड़िए से कहा-‘क्रव्यमुख ! लगता है तुम्हें बहुत भूख लगी है। जब तक स्वामी लौटकर नहीं आते, चाहे तो तुम थोड़ा-सा मांस खा सकते हो।’ क्रव्यमुख भूखा तो था ही। ऊंट का मांस खाने को लपका। अभी उसने ऊंट का मांस खाना आरंभ ही किया था कि सिंह लौट आया। दोनों उसे आता देखकर तुरंत दूर जा बैठे। सिंह ने जब भोग लगाना आरंभ किया तो उसकी निगाह ऊंट के हृदय की ओर गई। ऊट का हृदय अपने स्थान से गायब था। उसने क्रोध से दोनों की ओर देखते हुए पूछा-“इस शिकार को किसने जूठा किया है?

Also Check : मीठा सच Akbar Birbal Stories in Hindi

स्वार्थ – साधन की कपटनीति | Swarth – Sadhan Ki Kapatniti : सिंह का यह वचन सुनकर भेड़िया गीदड़ की ओर देखने लगा। डर के मारे उसकी कंपकपी छूट रही थी। चतुरक हंसकर कहने लगा-‘अब मेरे मुख की ओर क्या देख रहे हो क्रव्यमुख ? स्वामी का आहार जूठा करते समय तो तुमने मुझे पूछा भी नहीं, अब अपनी करनी का फल भोगो।’ चतुरक की बात सुनकर क्रव्यमुख अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग खड़ा हुआ। उधर सिंह उस ऊंट को खाने के बारे में सोच ही रहा था कि उसी समय बोझ से लदा हुआ ऊंटों का एक दल उधर से गुजरा। आगे-आगे जाने वाले ऊंट के गले में एक बड़ा सा घंटा लटक रहा था जिससे जोर की ध्वनि हो रही थी। उस शोर को सुनकर सिंह कुछ भयभीत हो गया, उसने गीदड़ से कहा-‘जाकर देखो तो चतुरक यह कैसा भयानक शोर है?’

Also Check : Child Labour in Hindi

स्वार्थ – साधन की कपटनीति | Swarth – Sadhan Ki Kapatniti : चतुरक ने जाकर देखा कि ऊंटों का एक दल जा रहा है। तुरंत उसके दिमाग में एक योजना कौंधी। वह लौटकर, सिंह से बोला कि वह तुरंत वहां से भाग जाए। ‘लगता है यमराज आप पर कुद्ध हो गए हैं। ऊंटों का कहना है कि आपने असमय ही उनके साथी को मार डाला है। अब वे दंडस्वरूप आपसे एक हजार ऊट लेने इसी ओर आ रहे हैं। ” सिंह ने जब देखा कि सचमुच एक ऊंटों का दल उसी ओर आ रहा है तो उसे चतुरक की बात में सत्यता जान पड़ी। उसे कोई अन्य मार्ग नहीं सूझा। उसने मृत ऊंट के शरीर को वहीं छोड़ा और सिर पर पैर रखकर वहां से भाग लिया। इस प्रकार गीदड़ चतुरक अपनी चतुराई से कई दिन तक ऊंट के मांस का भक्षण करता रहा | यह कथा सुनाकर दमनक ने आगे कहा-‘इसीलिए कहता हूं कि दूसरों को कष्ट पहुंचाते हुए भी अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए गुप्त बुद्धि का प्रयोग करने वाला व्यक्ति परिलक्षित नही हो सकता|”

Also Check : Whatsapp status in Hindi

स्वार्थ – साधन की कपटनीति | Swarth – Sadhan Ki Kapatniti : दमनक की बात सुनकर करटक को संतोष हो गया। उधर, दमनक के जाने के बाद संजीवक सोचने लगा-‘मैंने बहुत बड़ी मूर्खता की जो एक मांसाहारी से मित्रता कर बैठा। यदि कहीं अन्यत्र चला भी जाता हूं तो यह सिंह मुझे वहां भी नहीं छोड़ेगा।’ संजीवक ने इसी प्रकार कई बार विचार किया, फिर वह कुछ निश्चय करके सिंह के पास चला ही गया। वहां पहुंचकर वह अपना शरीर सिकोड़कर उसको प्रणाम किए बिना ही दूर जाकर बैठ गया। संजीवक का बदला हुआ व्यवहार देखकर पिंगलक को दमनक की बात पर विश्वास हो गया। जोर से गर्जना करते हुए उसने एक उछाल भरी और संजीवक पर आक्रमण कर दिया। संजीवक भी फुर्ती से उठ खड़ा हुआ। वह जोर से दहाड़ा और पिंगलक से भिड़ गया।

Also Check : Sad Quotes in Hindi

स्वार्थ – साधन की कपटनीति | Swarth – Sadhan Ki Kapatniti : सिंह के तीक्ष्ण दांतों और नाखूनों के प्रहार का उत्तर वह अपने शक्तिशाली सींगों से देने लगा | उन दोनों के मध्य ऐसे विकट युद्ध को होते देखकर करटक बोला-‘दमनक ! तुमने दो मित्रों को लड़वाकर उचित नहीं किया। तुम्हें सामनीति से काम लेना चाहिए था। संजीवक बेशक शिथिल होकर भूमि पर जा गिरा है, किंतु अभी मरा नहीं है। अभी भी उसमें काफी जान बाकी है। मान ली, उसने उठकर सिंह पर फिर प्रबल प्रहार कर दिया और अपने पैने सींगों से उसका पेट फाड़ डाला तो ? प्रिंगलक मर गया तो हम क्या करेंगे? सच तो यह है कि तुम्हारे जैसे नीच स्वभाव का मंत्री कभी अपने स्वामी का कल्याण कर ही नहीं सकता। अब भी इस युद्ध को रोकने का कोई उपाय है तो करो। तुम्हारी सारी प्रवृत्तियां विनाशोन्मुख हैं। जिस राज्य के तुम मंत्री होगे, वहां भद्र और सज्जन व्यक्तियों का प्रवेश ही नहीं होगा। परंतु तुम्हें उपदेश देने का क्या लाभ ? उपदेश तो सुपात्र को दिया जाता है। तुम उसके पात्र नहीं हो, अत: तुम्हें उपदेश देना ही व्यर्थ है। कहीं तुम्हारे कारण मेरी भी हालत वैसी ही न हो जाए जो सूचीमुख चिड़िया की हुई थी। दमनक ने पूछा-‘सूचीमुख कौन थी ?’ करटक ने तब सूचीमुख चिड़िया की यह कहानी सुनाई।

Also Check : Real Stories in Hindi – शेर करे देर

Share
Published by
Hind Patrika

Recent Posts

Go2win रिव्यु गाइड, बोनस और डिटेल्स | 2024 | Hind Patrika

Go2Win - भारतीय दर्शकों के लिए स्पोर्ट्सबुक और कैसीनो का नया विकल्प आज के दौर…

3 months ago

Ole777 रिव्यु गाइड, बोनस और डिटेल्स | 2023

Ole777 समीक्षा  Ole777 एक क्रिप्टो वेबसाइट  (crypto gambling website) है जिसे 2009 में लॉन्च किया…

2 years ago

मोटापा कैसे कम करें- 6 आसान तरीके – 6 Simple Ways for Weight Loss

मोटापे से छुटकारा किसे नहीं चाहिए? हर कोई अपने पेट की चर्बी से छुटकारा पाना…

2 years ago

दशहरा पर निबंध | Dussehra in Hindi | Essay On Dussehra in Hindi

दशहरा पर निबंध | Essay On Dussehra in Hindi Essay On Dussehra in Hindi : हमारे…

3 years ago

दिवाली पर निबंध | Deepawali in Hindi | Hindi Essay On Diwali

दिवाली पर निबंध  Hindi Essay On Diwali Diwali Essay in Hindi : हमारा समाज तयोहारों…

3 years ago

VBET 10 रिव्यु गाइड, बोनस और डिटेल्स | जनवरी 2022 | Hind Patrika

VBET एक ऑनलाइन कैसीनो और बैटिंग वेबसाइट है। यह वेबसाइट हाल में ही भारत में लांच…

3 years ago