सप्तऋषियों की शरण में डाकू रत्नाकर

सप्तऋषियों की शरण में डाकू रत्नाकर : डाकू रत्नाकर वापस सप्तऋषियों के पास आया और अपने शस्त्र फेंककर उनके चरणों में गिर पड़ा। आंखों में

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डाकू की साधना और वाल्मीकि नाम पड़ना

डाकू की साधना और वाल्मीकि नाम पड़ना : डाकू रत्नाकर ने सप्तऋषियों के बताए अनुसार माता सरस्वती का आह्वान किया और पद्मासन लगाकर ‘मरा मरा’

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देवर्षि नारद द्वारा वाल्मीकि ऋषि को उपेदश देना

देवर्षि नारद द्वारा वाल्मीकि ऋषि को उपेदश देना : वाल्मीकि ऋषि ने स्नान-ध्यान किया और देवर्षि नारद ने उन्हें केसरिया अंग वस्त्र प्रदान किए। केशों

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अहंकारी राजकुमारी विद्योत्तमा

अहंकारी राजकुमारी विद्योत्तमा : उज्जैन की राजकुमारी विद्योत्तमा को अपने ज्ञान पर बड़ा अहंकार था। उसने घोषणा कर रखी थी कि जो भी व्यक्ति उसे

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नवरत्नों में एक विशिष्ट रत्न

नवरत्नों में एक विशिष्ट रत्न : फिर विद्योत्तमा के पास कालिदास रहे या नहीं इसका पूर्ण विवरण तो ग्रंथों में नहीं मिलता। लेकिन विद्वानों द्वारा

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दुष्ट ब्राह्मण और धन्ना की जिज्ञासा

दुष्ट ब्राह्मण और धन्ना की जिज्ञासा : ब्राह्मण ने धन्ना से कहा, ” धन्ना ! देवी सरस्वती ज्ञान-विज्ञान को देने वाली देवी हैं। उन्हीं की

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