वाचालता का परिणाम | Vachalta Ka Parinam

वाचालता का परिणाम | Vachalta Ka Parinam

वाचालता का परिणाम | Vachalta Ka Parinam : किसी नगर में शुद्धपट नाम का एक धोबी रहता था। उसके पास एक गधा था जो अच्छा चारा न मिलने के कारण बहुत कमजोर हो गया था। एक दिन धोबी ने एक मरा हुआ बाघ देखा। धोबी इससे बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने सोचा कि इस बाघ की खाल निकालकर यदि वह अपने गधे को ओढ़ा दे तो लोग गधे को बाघ समझकर डरने लगेंगे। और गधे की अच्छे भोजन की समस्या स्वतः ही हल हो जाएगी

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वाचालता का परिणाम | Vachalta Ka Parinam

धोबी ने वैसा ही किया। उसने बाघ की खाल निकाल ली और अपने घर चला आया । रात को उसने अपने गधे को बाघ की खाल ओढ़ाकर उसे जौ के खेतों में चरने के लिए छोड़ दिया। प्रातः होते ही जब गधा लौटा तो उसका पेट खूब भरा हुआ था। तब से उसका यह नित्यप्रति का नियम बन गया। रात होते ही वह गधे को बाघ की खाल ओढ़ाकर खेतों में चरने के लिए छोड़ आता और बहुत प्रातः उसे अपने घर ले आया करता। ग्रामवासी उस गधे को बाघ समझकर डरते थे इसलिए उसके पास नहीं फटकते थे। इस प्रकार हरी-हरी जी की कोंपलें खाकर वह गधा काफी मोटा हो गया था।

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वाचालता का परिणाम | Vachalta Ka Parinam : लेकिन एक दिन इस रहस्य का भंडाफोड़ हो ही गया। गधे ने एक रात एक गधी को रेंकते हुए सुन लिया और लगा उसी के स्वर में स्वर मिलाने | बस फिर क्या था, गांव वाले जो उसे बाघ समझकर अब तक उसके पास नहीं फटका करते थे, लाठी लेकर गधे पर पिल पड़े। उन्होंने गधे को इतना पीटा कि वह वहीं पर ढेर हो गया | मगर अभी यह कहानी सुन ही रहा था कि किसी जलचर ने आकर उसको सूचना दी कि अनशन पर बैठी उसकी पली का प्राणांत हो गया है। इससे वह व्याकुल होकर विलाप करने लगा। बहुत देर तक विलाप करने के बाद जब वह कुछ शांत हुआ तो वानर से बोला-मित्र ! मैंने जो तुम्हारा अपराध किया है उसके लिए मुझे क्षमा कर दी। अब मैं स्त्री-वियोग से पीड़ित हो गया हूं।

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वाचालता का परिणाम | Vachalta Ka Parinam : मैं उसके बिना जीवित नहीं रह सकता। इसलिए अब मैं अग्नि में प्रविष्ट होकर अपने प्राणों का अंत कर लूगा।’ वानर हंसते हुए बोला-‘यह तो मैं पहले ही जानता था कि तुम अपनी स्त्री के दास हो, अब इसका प्रमाण भी मिल गया है। अरे मूर्ख ! ऐसी स्त्री की मौत पर तो तुम्हें उत्सव मनाना चाहिए। ऐसी स्त्रियां पुरुषों के लिए विष-समान ही होती हैं। बाहर से वे जितनी अमृत समान मीठी लगती हैं, अंदर से उतनी ही विष के समान कड़वी होती हैं।’ मगर बोला-‘कहते तो तुम ठीक ही हो, किंतु मैं करूं भी क्या ? तो मेरी पत्नी की मौत हो गई और दूसरी ओर मेरा मित्र भी मुझसे कुद्ध है। इसी बीच एक बलशाली मगर ने मेरे घर पर भी अधिकार कर लिया अब आगे और क्या होने वाला है, यह विधाता ही जानता है समय हालत तो उस किसान की पली जैसी हो गई है जो पति से तो छूटी ही थी, से भी वंचित कर दी गई थी। वानर ने पूछा-वह किस प्रकार ?’ तब मगर ने वानर को गीदड़ी और किसान-पत्नी की यह कथा सुनाई।

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