अमृत की खोज : एक बार पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए दुर्वासा मुनि को विद्याधर जाति की एक कन्या मिली। | उसके हाथ में संतानक फूलों की एक माला थी। उस माला को मुनि ने मांग लिया। दुर्वासा
मुनि ने वह माला इंद्र को सौंप दी। इंद्र ने वह माला ऐरावत हाथी के मस्तक पर डाल दी। ऐरावत उसकी सुगंध को सहन नहीं कर सका और उसने वह माला पृथ्वी पर गिरा दी।
दुर्वासा मुनि ने इसे अपना अपमान समझा। उन्होंने इंद्र को उसका वैभव नष्ट हो जाने का शाप दे दिया। इंद्र का वैभव क्षीण होने लगा तो असुरों की बन आई। उन्होंने इंद्र को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। स्वर्ग से निकाले जाने पर सभी देवगण पहले ब्रह्मा के पास गए, परंतु ब्रह्मा ने उनकी सहायता करने में स्वयं को असमर्थ बताया। तब वे ब्रह्मा के साथ क्षीर सागर में शयन करते विष्णु के पास पहुंचे और उनसे रक्षा करने की प्रार्थना की।
विष्णु ने कहा, “हे देवगण ! यदि असुरों से तुम अपनी रक्षा चाहते हो तो समुद्र मंथन करके तुम्हें अमृत खोजना होगा। इसके लिए तुम मंदराचल को मथानी बनाओ और वासुकि नाग को उस पर लपेटकर सागर को मथो । समुद्र-मंथन से निकले अमृत का पान करने से तुम बलशाली और अमर हो जाओगे। इस कार्य में मैं तुम्हारी सहायता करूंगा।”