बिना विचार काम पछतावा ही लाता हैं | Bina Vichar Kam Pachhtava Hi Lata Hain

बिना विचार काम पछतावा ही लाता हैं | Bina Vichar Kam Pachhtava Hi Lata Hain

बिना विचार काम पछतावा ही लाता हैं | Bina Vichar Kam Pachhtava Hi Lata Hain : किसी नगर में देवशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहा करता था। उसके घर के कोने में बिल बनाकर एक नेवली भी रहती थी। जिस दिन देवशर्मा की पत्नी अपने पुत्र को जन्म दिया, उसी दिन नेवली को भी एक बच्चा पैदा हुआ। किन्तु बच्चे को जन्म देने के बाद नेवली अधिक देर तक जीवित न रह सकी। और उसका देहांत हो गया। ब्राह्मणी को उस नवजात शिशु पर बहुत दया आई। उसने पुत्र की तरह उस नेवली के पुत्र का भी लालन-पालन आरम्भ कर दिया।

धीरे-धीरे नेवला बड़ा हो गया। अब वह प्राय: ब्राह्मणी के पुत्र के साथ ही रहने लगा था। दोनों में खूब मित्रता हो गई थी। लेकिन अपने पुत्र और नेवले में इतना प्यार होने पर भी ब्राह्मणी हमेशा उसके प्रति शंकित ही रहती थी। !

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बिना विचार काम पछतावा ही लाता हैं | Bina Vichar Kam Pachhtava Hi Lata Hain
बिना विचार काम पछतावा ही लाता हैं | Bina Vichar Kam Pachhtava Hi Lata Hain : एक दिन की बात है कि ब्राह्मणी अपने पुत्र को सुलाकर हाथ में घड़ा लेकर अपने पति से बोली-‘मैं सरोवर पर जल लेने जा रही हूं, जब तक मैं न लौटुं तब तक आप यहीं रुकना और बच्चे की देखभाल करते रहना। ‘ ब्राह्मणी जब चली गई तो उसी समय किसी यजमान ने आकर ब्राह्मण को खाने का निमंत्रण दिया | उस नेवले पर ही अपने पुत्र की रक्षा का भार सौंपकर ब्राह्मण अपने यजमान के साथ चला गया। संयोग की बात है कि उसी समय न जाने कहां से एक काला नाग वहां आ पहुंचा और वह बच्चे के पलंग की ओर बढ़ने लगा । नेवले ने उसे देख लिया | उसे डर था कि यह नाग उसके मित्र को न डस ले, इसलिए वह उस काले नाग पर टूट पड़ा। नाग बहुत फुर्तीला था, उसने कई जगह नेवले के शरीर को काटकर उसमें जख्म बना दिए किन्तु अंत में नेवले ने उसे मारकर उसके शरीर को खंड-खंड कर दिया|

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बिना विचार काम पछतावा ही लाता हैं | Bina Vichar Kam Pachhtava Hi Lata Hain : नाग को मारने के बाद नेवला उसी दिशा में चल पड़ा, जिधर ब्राह्मणी जल भरने के लिए गई हुई थी। उसने सोचा वह उसकी वीरता की प्रशंसा करेगी किन्तु हुआ उसके विपरीत। उसकी खून से तनी देह को देखकर ब्राह्मणी का मन आशंकाओं से भर उठा कि कहीं उसने मेरे पुत्र को तो नहीं काट लिया। यह विचार आते ही उसने क्रोध से सिर पर उठाए घड़े को नेवले पर पटक दिया। छोटा-सा नेवला जल से भरे घड़े की चोट बरदाश्त न कर सका और उसका वहीं प्राणांत हो गया। ब्राह्मणी भागती हुई अपने घर पहुंची। वहां पहुंचकर उसने देखा कि उसका पुत्र तो बड़ी शांति के साथ सो रहा है और उससे कुछ दूरी पर एक काले नाग का शरीर खंड-खंड हुआ पड़ा है।

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बिना विचार काम पछतावा ही लाता हैं | Bina Vichar Kam Pachhtava Hi Lata Hain : पश्चाताप से उसकी छाती फटने लगी। इसी बीच ब्राह्मण भी लौट आया। वहां आकर उसने अपनी पत्नी को विलाप करते देखा तो उसका मन भी सशंकित हो गया। लेकिन जब उसने पुत्र को शांति से सोए हुए देखा तो उसका मन शांत हो गया। उसकी पत्नी ने रोते हुए नेवले की मृत्यु का समाचार उसे सुनाया और बोली-‘मैंने तुम्हें यहीं ठहरने को कहा था किन्तु तुम लोभ के वशीभूत होकर अपने यजमान के यहां भोजन करने के लिए चले गए। तुम्हारे भिक्षा के लोभ ने ही यह सब करा दिया। मनुष्य को अतिलोभ कभी नहीं करना चाहिए। अतिलोभ के कारण कई बार मनुष्य के मस्तिष्क पर चक्र लग जाता है।’ ब्राह्मण ने पूछा-वह कैसे ?’ – ब्राह्मणी ने तब उसे’ यह कथा सुनाई।

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