बेटी का उन दिनों का दर्द | Daughter’s period pain (emotional story)

बेटी का उन दिनों का दर्द | Daughter’s period pain (emotional story)

 

Daughter's period pain

बेटी ने कुछ नहीं कहा लेकिन अपने पापा के बार बार पूछे जाने पर उसने झिझकते हुवे अपने मन की बात कह ही दी. उसे पेट में पीरियड्स की वजह से बहुत दर्द हो रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था की ये बात अपने पापा को कैसे बताई जाए इसीलिए वो चुप-चाप उसे सह कर रो ही रही थी और उसे लगा उसके पास और कोई चारा नहीं था.

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Daughter's period pain

Daughter’s period pain : साथ ही उसे अपनी माँ की भी बहुत याद आ रही थी जो कुछ समय पहले ही उसे पानी गरम कर के देती थी पीने के लिए भी और पेट सेकने के लिए भी, कभी कभी दर्द ज्यादा बढ़ जाने पर पीरियड्स की दवाइयां उसकी माँ पहले से ही समय से खरीद कर ला कर अपने पास रखती थी. ईशा को पेट में तो दर्द हो ही रहा था लेकिन इस चीज़ का दर्द सीने में ज्यादा हो रहा था की अब उसकी माँ कभी उसके लिए पानी गरम कर के नहीं रख पाएगी, ना ही दवाइयां पहले से खरीद कर, और पेट सेकने के लिए बोतल भी अब उसे खुद ही हिम्मत इक्कठी कर के करनी थी, क्यूंकि उसे लगता था की अब कोई नहीं हैं जो उसके इस दर्द को समझ पाए और उसका साथ दे पाए. माँ एक महीने पहले ही गुज़र चुकी थी और अब ईशा अपने आप को एकदम अकेला पा रही थी. ये अकेलापण उसे अंदर ही अंदर घुटन का एहसास दे रहा था.

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Daughter’s period pain : यह सब सुनने के बाद वह जल्दी से रसोई घर में गया और उसने पानी गरम किया, उसके बाद अलमारी में जब ढूंढा तो उसे वो पीरियड्स वाली दवाई भी मिल गयी। उसने अपनी बेटी को वो गरम पानी दिया और दवाई खिलाई और जब तक वह सोने के लिए नहीं गई तब तक उसने उसके पैरों की मालिश की. अब ईशाकी नींद आने लगी थी. लेकिन उसके पापा फिर भी पूरी रात उसके बगल में बैठ रहे ।

Daughter's period pain

Daughter’s period pain : वह अब जानता था कि उसे अपनी बेटी के लिए दोनों की भूमिका निभानी हैं माँ की भी और बाप की भी जो की वो बखूबी निभा भी रहा था। एक अकेला माता-पिता दोनों होने के नाते यह रास्ता आसान नहीं था लेकिन वह अपनी पूरी कोशिश कर रहा था की अपनी बेटी को किसी चीज़ की कोई कमी ना होने दे।

ऐ मेरी प्यारी गुड़िया
जीवन से भरी,खुशियो की कड़ी
जब से आई तू मेरे अंगना
मेरे भाग्य खुले घर लछ्मि बसी
ऐ……

तेरे मासूम सवालो की लड़ी
तोतली जुवा से हर एक बोली
गुस्से मे कहे या रूठ कर बोली
लगती सुमधुर गीतो से भली
ऐ……….

घर लौटता शाम थक कर चूर चूर
साहब के डाट से मन मजबूर
सुन कर मेरे दो पहिए की आवाज
भागी आती तू मेरे पास
तेरी पापा पापा की पुकार
हर लेती सब कर देती नई
ऐ………

Daughter’s period pain

सोचता हू जब तू बड़ी होगी
तेरी शादी लगन की घड़ी होगी
कैसे तुझको बिदा दुंगा
कैसे खुद को सम्भालुंगा
सहम जाता हू निबर पाता हूं
क्यो एैसी रीत बनी जग की
ऐ…………

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Daughter's period pain

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