‘पद्मश्री’ से सम्मानित : सन् 1960 में पं. नेहरू के अनुमोदन पर मदर टेरेसा को ‘पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा की गई, परंतु दो वर्ष तक मदर इस पुरस्कार को लेने से मना करती रहीं, क्योंकि वे किसी पुरस्कार के लिए यह सेवा कार्य नहीं कर रही थीं। उन्होंने बड़ी विनम्रता के साथ पुरस्कार लेने से मना कर दिया। परंतु बिशप के अनुरोध करने पर सन् 1962 में उन्होंने भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के हाथों यह पुरस्कार ग्रहण किया। | राष्ट्रपति भवन में उनका सादगी भरा और शांति तथा गंभीरता के साथ स्वागत किया गया, क्योंकि मदर किसी तरह के दिखावे की पक्षपाती नहीं थी। मंच पर जब उन्हें बुलाया गया तो राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद साक्षात ममता की प्रतिमूर्ति उस संत स्वरूप स्त्री की सादगी देखकर ठगे से रह गए। उनकी आंखें छलछला आईं। राष्ट्रपति ने उन्हें पुरस्कार देते हुए कहा, “मदर ! यह मैं आपको सम्मानित नहीं कर रहा हूं, बल्कि आपकी महान तपस्या के सामने स्वयं को ही सम्मानित होता हुआ अनुभव कर रहा हूं।”
पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। राष्ट्रपति का इस प्रकार भाव-विभोर हो जाना असामान्य घटना थी। ऐसा लगा जैसे एक संत दूसरे संत से भेंट कर रहा हो।