साईं का शिरडी पहुंचना | Sai ka Shirdi Pahunchna

साईं का शिरडी पहुंचना | Sai ka Shirdi Pahunchna

साईं का शिरडी पहुंचना | Sai ka Shirdi Pahunchna : औरंगाबाद में धूपखेडे नाम का एक गाँव था। उसके सरपंच चाँद भाई का घोड़ा कहीं खो गया था, जिसे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वह जंगल में पहुँच गया। अचानक चाँद भाई ने एक आवाज सुनी, “आओ बैठो और यहाँ कुछ समय के लिए विश्राम करो, तुम बहुत थके हुए दिख रहे हो।” चाँद भाई इधर-उधर देखने लगा। उसने देखा दाढ़ी वाला एक नौजवान फकीर, सफेद वस्त्रों में तथा हाथों में चिमटा लिए बैठा है। फकीर ने पूछा, “मित्र, तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” “मैं यहाँ अपने खोए हुए घोड़े को ढूँढ़ रहा हूं।” चाँद भाई ने जवाब दिया। “जाओ और पेड़ों के पीछे देखो।” फकीर ने कहा। चाँद भाई ने देखा तो पाया कि पेड़ों के पीछे घोड़ा घास चर रहा है। उसने सोचा, “हे भगवान्, यह फकीर कौन है? अवश्य ही यह कोई महान् आत्मा है।” “आप कौन हैं, श्रीमान्? मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूँ कि आपने मुझे न जानते हुए भी मेरी सहायता की।” चाँद भाई ने फकीर से पूछा। “लोग मुझे साँई बाबा कहते हैं.

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साईं का शिरडी पहुंचना | Sai ka Shirdi Pahunchna

साईं का शिरडी पहुंचना | Sai ka Shirdi Pahunchna : यहाँ आओ और बैठी, कुछ देर विश्राम करो।” यह कहते हुए साँई बाबा ने अपना चिमटा जमीन पर रखा और कोयले का जलता हुआ अंगारा निकालकर गर्माहट पैदा करने के लिये आग जलाई। यह देखकर चाँद भाई तुरन्त समझ गया कि यह कोई साधारण फकीर नहीं है। अत: चाँद भाई ने अगले दिन फकीर को अपने घर बुलाया। फकीर मुस्कुराते हुए मान गया और चाँद भाई खुशी-खुशी अपने घोड़े के साथ घर वापिस आ गया। अगले दिन चाँद भाई ने अपने घर में फकीर का स्वागत किया। फकीर ने पूछा, “तुम्हारे घर में इतने सारे लोग किस खुशी में एकत्रित हुए हैं?” ‘आज मेरी पत्नी के भतीजे का विवाह है। सभी लोग शिरडी जाने वाले हैं, जहाँ पर लड़की रहती है। क्या आप हमारे साथ शिरडी चलेंगे?” चाँद भाई बोले। “हाँ-हाँ, क्यों नहीं, यदि यही तुम्हारी इच्छा है तो।” फकीर बोला। इस प्रकार फकीर भी बारात के साथ शिरडी चले गए। शिरडी में सभी लोग खाण्डोबा मंदिर के पास रूक गए। विवाह के पश्चात् सभी लोग दुल्हन के साथ धूपखेड़े गाँव वापस आ गए.

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साईं का शिरडी पहुंचना | Sai ka Shirdi Pahunchna

साईं का शिरडी पहुंचना | Sai ka Shirdi Pahunchna : परन्तु फकीर शिरडी में ही रुके रहे। कई दिनों तक वे नीम के पेड़ के नीचे ही रह कर लोगों से भोजन माँगते रहे। एक सुबह, फकीर खाण्डोबा के मंदिर में वहाँ रहने के उद्देश्य से गया, परन्तु उसकी मुस्लिम वेशभूषा देखकर मंदिर के पुजारी, ने उसे द्वार पर ही रोकते हुए कहा, “मेरे विचार से आप गलत रास्ते पर आ गए हैं। मस्जिद यहाँ से कुछ दूर उस कोने पर है।” साँई बाबा मुस्कुराए और बोले, “यदि तुम ऐसा ही चाहते हो, तो ऐसा ही सही।” अत: साँई बाबा वहाँ से चले गए जहाँ उन्हें एक टूटी हुई, मिट्टी की पुरानी दीवारों वाली मस्जिद मिली। जैसे ही साँईबाबा मंदिर से गए, पुजारी को ऐसा लगा जैसे वह किसी महान् आत्मा से मिला था।
साँई बाबा उस पुरानी मस्जिद में ही रहने लगे और उसका नाम उन्होंने द्वारका रखा। बाद में, चाँद भाई तथा मंदिर के पुजारी आदि साईं बाबा के भक्त तथा शिष्य बन गए तथा जीवनभर उनकी सेवा करते रहे।

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