समुद्र-मंथन : भगवान विष्णु का आश्वासन पाकर देवताओं ने समुद्र-मंथन की तैयारियां शुरू कर दीं। इस कार्य में सहायता करने के लिए उन्होंने असुरों को भी अमृतपान कराने का लालच दिया। असुर तैयार हो गए। मंदराचल पर्वत को महाकच्छप की पीठ पर समुद्र में धर दिया गया। मंदराचल के शीर्ष पर स्वयं विष्णु विराजमान हो गए, जिससे मंदराचल इधर-उधर न लुढ़के। वासुकि नाग को मंदराचल की कमर में लपेट दिया गया।
देवता बड़े चालाक थे। उन्होंने असुरों को वासुकि नाग के फन की ओर रखा और स्वयं पूंछ की ओर से पकड़कर खड़े हो गए। इस प्रकार विधि-विधान के साथ शुभ घड़ी देखकर समुद्र का मंथन प्रारंभ कर दिया गया।
धीरे-धीरे समुद्र मंथन में तेजी आने लगी। ज्यों-ज्यों तेजी बढ़ी, वासुकि नाग विषभरे फेन अपने मुख से उगलने लगा। उसके फेनों के संपर्क में आने से असुरों का रंग काला पड़ गया, लेकिन देवगण उसी तरह गौर वर्ण बने रहे।
समुद्र-मंथन को जब काफी देर हो गई, तब देवगण और असुर निराश और चिंतित होने लगे। भगवान विष्णु ने उन्हें धीरज बंधाया।