समाज का नजरिया | Society’s point of view
समाज का नजरिया | Society’s point of view : “वह पति-पत्नी बहुत ही धार्मिक मालुम होते हैं। उन्होंने वैष्णोदेवी, तिरुपति, अमरनाथ और लगभग सभी धार्मिक स्थानों का दौरा इस कम उम्र में कर लिया हैं, भला आज के जमाने में कहाँ ऐसे लोग देखने के लिए मिलते हैं। “समाज ने ये कहा।
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केवल उन दोनों को ही पता था की वो कितना ज्यादा चाहते हैं की उनकी माँ बाप बनने का चाहत पूरी हो सके।
हमे कभी भी बिना जाने समझे किसी भी इंसान को जांचना नहीं चाहिए, हमारे आसपास में जितने भी लोग हैं सबकी एक अलग कहानी हैं जिसे हम नहीं जानते मगर बिना जाने पहचाने उनको अच्छा बुरा समझना हमारी ही एक बहुत बड़ी कमी हैं, और ये कमी सिर्फ आप और मुझ तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि हमारा पूरा समाज इस कमी से ग्रसित हैं. खुद को एक कदम ऊपर उठाने की कोशिश कीजिये और दुसरो को परखना बंद कर दीजिये. इसी में आपकी और सबकी भलाई हैं.
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एक बाँझ औरत है
जो बच्चों को पुचकारती नहीं
जिसकी आँखों से नहीं बहती ममता
देखकर फुदकते कदम
नहीं, वो किसी बच्चे को नहीं मारती
पर न ही दुलारतीं
जैसे बच्चे नहीं है उस दुनिया के जहाँ से वो आई है
वहां बस प्रौढ़ बसता है
प्रौढ़ जो मातृत्व को लाँघ के निकल गया है।
वो और बच्चे हमेशा अलग ही रहे
वो कुढ़ती है उन्हें देखकर
धुल में लिपटे
चिढ़ती है उनके शोर से
शैतानियों से
निकलती है बच्चों में हज़ार कमियाँ।
बच्चे उसे अकेला छोड़ भी दें पर
बाँझपन उसे नहीं छोड़ता।
रूखेपन की सख्त चादरें चीर के वो घुस ही जाता है
उसके सीने में
जहाँ आंसू नहीं हैं
एक चीख कैद है
हाँ,उसे बच्चे पसंद नहीं
उसे देखती हूँ और देखती हूँ खुद को
प्रेम को
हाँ, प्रेम वो शिशु है जिसने मेरी कोख से जन्म नहीं लिया
वो भी बाँझ है और मैं भी
एक कठोर रुखी बाँझ!
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