विष्णु का वामनावतार
विष्णु का वामनावतार : भक्त प्रह्लाद के पौत्र का नाम बलि था। वे असुर होते हुए भी अत्यधिक धार्मिक और दानवीर थे। यद्यपि वे अत्यंत शक्तिशाली राजा थे, परंतु देवराज इंद्र ने उन्हें परास्त करके अपने अधीन कर लिया था। लेकिन उन्होंने भृगुवंशी ब्राह्मणों की अटूट सेवा करके अनेक रहस्यमय विद्याएं सीखीं और अपना बल बढ़ाकर एक दिन इंद्र से अपना राज्य स्वतन्त्र करा लिया। यही नहीं, उन्होंने इंद्रासन पर भी अधिकार कर लिया। | इंद्र भागा-भागा विष्णु भगवान के पास पहुंचा और रक्षा की गुहार करने लगा। भगवान ने पूछा, ”देवराज ! राजा बलि बड़ा विद्वान और कूटनीतिज्ञ है। असुर होते हुए भी ब्राह्मणों की सेवा से वह अत्यंत बलशाली हो गया है। उसे पराजित करना कठिन है। अच्छा है, अभी तुम स्वर्ग में न जाओ।”
देवराज इंद्र ने कहा, “प्रभु! हमें कैसे भी बचाइए। हम सभी राग-रंग से विमुख होकर आत्म-संयम से रहेंगे। सभी भोगों का त्याग कर देंगे।”
प्रभु को उस पर दया आ गई। उन्होंने उसे आश्वस्त करके वापस भेज दिया और स्वयं वामन अंगुल का रूप बनाकर एक ब्राह्मण के वेश में राजा बलि के पास पहुंचे।